Polygraph Test जिसे हम सब झूठ पकड़ने वाली मशीन के नाम जानते है। यह मशीन सरकारी एजेंसियों के द्वारा प्रयोग की जाती है। किसी व्यक्ति या अपराधी पर इसका प्रयोग करने ले लिए court की अनुमति लेनी पड़ती है। चलिए तो इस झूठ पकड़ने वाली मशीन के बारे में विस्तार से जानते है।
Polygraph Test का इतिहास
Lie डिटेक्टर का आविष्कार सन 1921 में जॉन अगस्तस लार्सन के द्वारा किया गया था । इस मशीन के आविष्कार के पीछे मुख्य कारण था अपराधियों से सच मनवाना। यह मशीन शारीरिक प्रतिक्रियाओं के आधार पर ग्राफ तैयार कर के देती है। सबसे पहले झूठ पकड़ने वाले यंत्र को 1878 में बनाया गया था पर इसमें कुछ कमियां थी। समय के साथ ये कमियां दूर हुई और 1921 में यह यंत्र पूरी तरह बन कर तैयार हुआ। आज तक बहुत से मामलों में इस यंत्र का इस्तेमाल हो चुका है। ज्यादातर इसका इस्तेमाल बहुत ही गंभीर मामलों ओर आतंकी गतिविधियों में किया जाता है।
Lie डिटेक्टर के प्रकार
- पॉलीग्राफ टेस्ट
- नार्को टेस्ट
- आंखों के इशारों का टेस्ट
क्या देखा जाता है में Polygraph Test
इजब व्यक्ति सवालों के जवाब दे रहा है तो उसकी हृदय की गति, सांस लेने की गति आंखों की मूवमेंट हाथों की पैरों की मूवमेंट सच ओर झूठ के अनुसार होती है। पर इस मशीन के द्वारा मुख्य रूप से चार गतिविधियां देखी जाती है जैसे कि
- Blood प्रेशर
- pulse रेट
- सांस लेने की दर
- कितना पसीना निकल रहा है।
Polygraph Test का वैज्ञानिक आधार
Polygraph Test पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार पर काम करता है। यह मशीन बिल्कुल अच्छे तरीके से व्यक्ति की शारीरिक गतिविधियों को देखती है और उसी के अनुसार ग्राफ बनाती है। इस का इस्तेमाल केवल सरकारी एजेंसियों ही कर सकती है। उनको भी इसको इस्तेमाल के लिए कानूनी अनुमति की जरूरत होती है।
कैसे काम करता है Polygraph Test
जिस भी व्यक्ति का पॉलीग्राफ टेस्ट होना होता है उसका पहले अच्छे से मेडिकल किया जाता है। जिस में व्यक्ति जब सामान्य होता है उसका blood प्रेशर, heart रेट का रिकॉर्ड किया जाता है। इसके बाद व्यक्ति के सीने पर न्यूमोग्राफ ट्यूब, बाजू पर पल्स कुप्स ओर उंगलियों पर लम्ब्रोसो ग्लव्ज लगाए जाते है।
इसके बाद व्यक्ति से साधारण सवाल पूछे जाते है। जिस से मशीन की एक्यूरेसी चेक की जाती है। इसके बाद उस से वो सवाल पूछे जाते है जिन का सच जानना होता है। जब वो झूठ बोलता है तो उसकी हार्ट रेट, blood प्रेशर और पसीना निकलने में तब्दीली होती है। ओर मशीन के द्वरा उसी के अनुसार ग्राफ तैयार किया जाता है। ग्राफ के पता चल जाता है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच।
जब कोई व्यक्ति सच बोलता है तो व्यक्ति को किसी प्रकार का कोई डर नहीं होता पर जब वो झूठ बोलता है तो डर के कारण उसकी शारीरिक गतिविधियों में तब्दीली आती है। जब हम झूठ बोलते है तो हमारे दिमाग से अलग सिग्नल निकलता है जिसे P3 के नाम से जाना जाता है। इस के कारण blood pressure और हार्ट रेट में बदलाव आता है।
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निष्कर्ष
इस यंत्र का इतिहास बहुत पुराना है। इसका सबसे पहले इस्तेमाल सन 1878 में किया गया था। इसका इस्तेमाल बहुत ही गंभीर केसेज में किया जाता है। ओर किसी भी व्यक्ति पर प्रयोग करने से पहले अदालत की अनुमति होनी बहुत ही जरूरी है। आज तक भारत में बहुत से आपराधिक मामलों में Polygraph Test का इस्तेमाल हो चुका है।
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