Gilgit-Baltistan, भारत और पाकिस्तान के बीच एक लंबे समय से चले आ रहे विवाद का केंद्र है। यह क्षेत्र, जो जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है, अपनी रणनीतिक स्थिति और प्राकृतिक संसाधनों के कारण चर्चा में रहता है। भारत इसे अपने क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा मानता है, जबकि पाकिस्तान इसे प्रशासित करता है। आइए जानते हैं कि Gilgit-Baltistan क्यों है इतना महत्वपूर्ण।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1947 का विभाजन और विवाद की शुरुआत
1947 में, जब महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय करने का फैसला किया, तब Gilgit-Baltistan में गिलगित स्काउट्स के ब्रिटिश अधिकारियों ने बगावत कर दी और क्षेत्र को पाकिस्तान को सौंप दिया। भारत इसे अवैध कब्जा मानता है, क्योंकि यह क्षेत्र 1947 के विलय पत्र के तहत भारत का हिस्सा है।
संयुक्त राष्ट्र और कश्मीर विवाद
1948 में, भारत ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाया, जहां जनमत संग्रह का प्रस्ताव रखा गया। लेकिन पाकिस्तान ने क्षेत्र खाली नहीं किया, जिसके कारण Gilgit-Baltistan आज भी विवादित है।
रणनीतिक महत्व
भौगोलिक स्थिति
Gilgit-Baltistan की सीमाएं अफगानिस्तान, चीन और भारत से मिलती हैं। यह क्षेत्र कराकोरम राजमार्ग और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का महत्वपूर्ण हिस्सा है। CPEC के तहत चीन ने इस क्षेत्र में भारी निवेश किया है, जिसे भारत अपनी संप्रभुता पर हमला मानता है।
प्राकृतिक संसाधन
हाल के वर्षों में, Gilgit-Baltistan में सोना, तांबा और कोबाल्ट जैसे खनिजों के भंडार मिले हैं। यह क्षेत्र जल संसाधनों और ग्लेशियर्स का भी केंद्र है, जिसे पाकिस्तान “पानी का टैंक” कहता है।
हाल के घटनाक्रम
प्रांतीय दर्जे का विवाद
2020 में, पाकिस्तान ने Gilgit-Baltistan को अस्थायी प्रांतीय दर्जा देने की घोषणा की, जिसे भारत ने अवैध बताया। हाल ही में, पाकिस्तान ने 26वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से इसे पूर्ण प्रांत बनाने की योजना बनाई है। भारत ने इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन माना और क्षेत्र खाली करने की मांग की।
स्थानीय असंतोष
Gilgit-Baltistan के लोग शिक्षा, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की कमी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। कई लोग भारत के साथ एकीकरण की मांग कर रहे हैं, विशेष रूप से 2023 में चंद्रयान-3 की सफलता के बाद।
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निष्कर्ष
Gilgit-Baltistan का विवाद केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि रणनीतिक और आर्थिक महत्व का भी है। भारत इसे अपनी एकता का हिस्सा मानता है, जबकि पाकिस्तान और चीन के हित इसे जटिल बनाते हैं। इस क्षेत्र का भविष्य दोनों देशों की कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के रुख पर निर्भर करता है।
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